शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

चमकते सितारे उड़ते लश्कारे

यह चेहरा कुछ पहचाना सा है न? अनिल कपूर ही तो हैं, शायद किसी भूमिका के लिए वज़न कुछ बढ़ाया गया है। मैंने भी पहली नज़र में यही सोचा था, लेकिन सोच सही नहीं निकली। ये अनिल कपूर नहीं अरबी दुनिया के लोकप्रिय पॉप गायक राघेब अल्लामा है। पिछले दिनों इनके अमर दिआब के साथ विवाद के चर्चे अखबारों में खूब छपे। जल्दी ही सब कुछ शांत हो गया और दोनो दोस्त बन गए। ठीक वैसे ही जैसे हमारे बॉलीवुड में होता है। जहाँ सितारे चमकेंगे वहाँ कुछ लश्कारे तो उड़ेंगे ही।

अरबी पॉप धमाकेदार संगीत है। इसकी ताल का जवाब नहीं। फिर भी यह माना होगा कि भारतीय फिल्मी संगीत जैसा दुनिया के किसी देश की फिल्मों का संगीत नहीं होता। शायद इसीलिए सारी दुनिया को पॉप संगीत की आवश्यकता होती है। अरबी पॉप की दुनिया काफ़ी बड़ी है जो मिस्र से लेकर लेबनॉन तक फैली है। राघेब मूलरूप से लेबनान के हैं और अमर दिआब मिस्र के और ये दोनो ही गायक इमारात में खूब लोकप्रिय हैं।

अमर दिआब ने अपनी सफलती की ऊँचाइयों को वर्ष 2000 में तब छुआ जब उनका एलबम तमल्ली मआक जारी हुआ। इसने अरबी दुनिया में खूब धूम मचाई। उस समय इमारात की हर संगीत की दुकान, सुपर मार्केट और कार में यही गीत दिन रात सुनाई देता था। केवल अरबी दुनिया ही नहीं यूरोप में भी इसे खूब लोकप्रियता प्राप्त हुई। हमारा भारत भी इसकी गूँज से नहीं बचा। बहुत से पाठकों को अन्नू मलिक द्वारा संगीतबद्ध किया मल्लिका शेरावत और इमरान हाशमी पर फ़िल्माया गया मर्डर फिल्म का एक गीत 'कहो न कहो' याद होगा। वह गीत इसी धुन पर आधारित था।

जो गीत इतना लोकप्रिय हो उसमें कुछ तो विशेष होता ही है। इस गीत में अरबी संगीत की जोशीली ताल को स्पैनिश गिटार के साथ प्रयोग में लाया गया है और ऐसा करते हुए गीत को जोशीला बनाने की बजाय बोलों के अनुरूप मधुर बनाया गया है। यही इस गीत की विशेषता है। यू ट्यूब पर खोजें तो इस गीत पर आधारित दो वीडियो मिलते हैं। एक में अरबी पृष्ठभूमि है तो दूसरे में यूरोपीय। यहाँ प्रस्तुत है अरबी पृष्ठभूमि वाले वीडियो की कड़ी। इसमें अरबी संगीत और नृत्य की झलक देखी जा सकती है। गिटार जैसा दिखने वाला थोड़ा छोटा और मोटा जो वाद्य बजाया जा रहा है वह ओउद है और स्वरमंडल जैसा एक दूसरा सफ़ेद वाद्य क़नून है। यह स्वरमंडल से थोड़ा बड़ा होता है और इसमें 75 तार लगे होते हैं। वीडियो के पूर्वार्ध में जिस तरह लोग नृत्य कर रहे हैं उसमें हाथों और पैरों को कुछ विशेष मुद्राओं में संचालित किया जा रहा है। ये दो तीन मुद्राएँ अरबी नृत्य की आधारभूत मुद्राएँ है और हर अरबी इन मुद्राओं में नृत्य करना जानता है। तो फिर देर किस बात की, वीडियो पर क्लिक करें और अरबी संगीत का आनंद लें। वीडियो देखते हुए अमर दिआब के चेहरे में किसी किसी कोण से कुछ लोगों को मिलिंद सोमन की झलक मिल सकती है। इसका एक और वीडियो यहाँ देखा जा सकता है।

7 टिप्‍पणियां:

SACCHAI ने कहा…

" ek acchi post badhai "

----eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

Dinesh Saroj ने कहा…

भारतीय फिल्मी संगीत जैसा दुनिया के किसी देश की फिल्मों का संगीत नहीं होता।

तो आप यह भी समझते ही होंगे की हिंदी फिल्मों के सारे हिट गीत की धुन किसी न किसी दुसरे देश के संगीत से चुराई हुयी होती है.... विस्वास न हो तो शोध कर लें, या गूगल तो जिंदाबाद है ही...
यह तो अफसोस जनक ही है की जिस धरा के कण-कण में गीत-संगीत बसता है, उस धरा के फिल्मों में चुराया धुन बजाया जाता है.... वैसे आज तो यह भी एक गहन कला है....

सुशीला पुरी ने कहा…

आभार ! ऐसे कलाकार से रूबरू कराने का .

Asha Joglekar ने कहा…

दूसरों का संगीत लेने में बुराई नही है उनको यदि आभार किया जाये । इस पोस्ट से आपने अमर दिआब जी से परिचित कराया शुक्रिया ।

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

राघेब अल्लामा---जैसे बेहतरीन कलाकार पर बढ़िया लेख।

बेनामी ने कहा…

पूर्णिमा जी ! राघेब जैसे कलाकार को मिलाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान ने कहा…

achchi tulna hai.